Guru Govind Singh jayanti - 2 January 2020
Guru Govind Singh
(26 दिसम्बर 1666- 7 अक्टूबर 1708)
गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें गुरु थे। उनका जन्म पौष शुक्ल सप्तमी संवत 1723 तदनुसार 26 दिसंबर 1666 को पटना में हुआ था। उनके पिता गुरु तेग बहादुर जो कि सिखों के नौवें गुरु थे कि मृत्यु के उपरांत 11 नवंबर 1675 को वे गुरु बने। वे एक महान योद्धा, कवि,भक्त, आध्यात्मिक नेता थे।सन 1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की । जो सिखों के इतिहास का महत्वपूर्ण दिन बन गया।
गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों के पवित्र ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' को पूरा किया । विचित्र नाटक को उनकी आत्मकथा माना जाता है। यही उनके जीवन के बारे में जानकारी का सबसे बड़ा स्रोत है। यह 'दशम ग्रंथ' का एक भाग है। दशम ग्रंथ गुरु गोविंद सिंह जी की कृतियों के संकलन का नाम है।
वे महान लेखक ,मौलिक चिंतक तथा संस्कृति सहित कई अन्य भाषायों के ज्ञाता थे। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार मे 42 कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें ' संत सिपाही' कहते थे। वे भक्ति व शक्ति के अद्वितीय संगम थे।
उन्होंने मुग़लो के साथ कई युद्ध लड़े। धर्म के लिए उन्होंने समस्त परिवार का बलिदान दिया ।जिसके लिए उन्हें 'सर्ववंशदानी ' भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त लोगो में वे कलगीधर, दधमेश,बांजवाले आदि कई नामों ,उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते थे।
उन्होंने सदा प्रेम व भाईचारे का ही संदेश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, सौम्यता, मधुरता से परास्त किया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना नहीं चाहिए और न ही डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में अवदेश देते हैं ' भे काहु को देत नहि, नहि भय मानत आन' । वे बचपन से ही सरल,सहज,भक्ति भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता,सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग ही सत्य का मार्ग है और सदैव सत्य ही विजयी होता है।
Guru Govind Singh jayanti - 2 January 2020
Reviewed by Annu
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January 01, 2020
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