आचार्य नारायण देव : एक परिचय Acharya Narayan Dev
आचार्य नारायण देव : एक परिचय
आचार्य नारायण देव का जन्म 30 अक्टूबर 1889 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में हुआ था। उनके पिता वकील थे। वह पहले सीतापुर में वकालत करते थे बाद में फैज़ाबाद में वकालत करने लगे। उनकी हिन्दू धर्म व संस्कृति में गहरी निष्ठा थी। नरेंद्र देव पर पिता का अत्यधिक प्रभाव था। नरेंद्र देव की प्रारंभिक शिक्षा फैज़ाबाद में ही हुई तथा घर पर ही वेद, गीता, उपनिषद, रामायण, महाभारत, अमरकोश और लघुकौमुदि आदि का अध्ययन किया। बाल्यकाल में नरेन्द्रदेव पं माधव प्रसाद मिस्र, स्वामी रामतीर्थ और मदनमोहन मालवीय के संपर्क में आये। इनका प्रभाव उनके व्यवक्तित्व पर पड़ा। उन्होंने म्योर सेंट्रल कॉलेज प्रयाग से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन 1913 में काशी से एम. ऐ. तथा 1915 में एल. एल. बी. की परीक्षा पास कर के फैज़ाबाद वकालत के लिए चले गए। आचार्य नरेंद्र देव ने बचपन से ही भारतीय राजनितिक और राष्ट्रीय आंदोलन की गतिविधियों को निकट से देखा था। छात्र जीवन से ही उनका झुकाव गरम दल की तरफ था।
लोकमान्य के स्वदेशी स्वशिक्षा और स्वराज के विचार ने नरेन्द्रदेव को काफी प्रभावित किया। उनपर अरविन्द घोष के राष्ट्रवादी विचारों का भी प्रभाव पड़ा।
1917 की रूस की क्रांति से नरेंद्र देव काफी प्रभावित हुए तथा उन्हें मार्क्सवादी विचारधारा ने काफी प्रभावित किया। परिणामतः वे मार्क्सवाद की ओर आकर्षित हुए और मार्क्सवादी बन गए।
होमरूल के माध्यम से उन्होंने सक्रिय राजनीती में भाग लेना प्रारम्भ किया। होमरूल आंदोलन के ही सिलसिले में ही रअरेन्द्रदेव पंडित नेहरू के संपर्क में आये। 1920 में महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन चलाया तब उसके समर्थक बन गए। 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन का संयुक्त प्रान्त में नेतृत्व किया और जेल भी गए।
आचार्य नारायण देव एक कट्टर समाजवादी थे। सं 1934 में कांग्रेस के कुछ नेताओं ने जयप्रकाश नारायण के प्रयत्नों के फलस्वरूप कांग्रेस के भीतर समाजवादी दल के निर्माण का निश्चय किया। उसके प्रथम सम्मेलन की अध्यक्षता आचार्य नारायण देव ने की। भारत छोड़ो आंदोलन में वह बंदी बना लिए गए थे और 1945 में जेल से छूटने के बाद उन्होंने कांग्रेस समाजवादी दल की पुनः स्थापना की। उनके बहुत से साथी समाजवादी आंदोलन से विमुख हो गए। लेकिन उन्होंने समाजवादी विचारधारा से अपना सम्बन्ध नहीं तोड़ा।
वे शिक्षाशास्त्री भी थे। उन्होंने महान शिक्षाविद के रूप में भारी ख्याति अर्जित की। वे पुरातत्व और संस्कृत के प्रकांड विद्वान् थे। उन्होंने प्राकृत का भी गहन अध्ययन किया था। तथा बौद्ध दर्शन का उनपर गहरा प्रभाव था।
19 फरवरी 1956 को मद्रास में वे पंचतत्व में विलीन हो गए।
आचार्य नारायण देव : एक परिचय Acharya Narayan Dev
Reviewed by Janhitmejankari Team
on
June 09, 2019
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