बांसुरी अलंकार / Alankars for practice

बांसुरी अलंकार / Alankars for practice 

bansuri alankars for practice


बाँसुरी एक ऐसा यंत्र है जिसके साथ आपको हमेशा संपर्क में रहना होगा। आपको रोजाना इसका  रियाज (प्रैक्टिस) करना  चाहिए। जितना अधिक आप अभ्यास करेंगे उतनी ही तेजी से आप सीखेंगे। यदि आप एक दिन अभ्यास छोड़ते हैं, तो इसका परिणाम अगले दिन दिखाई देगा और आप व्यक्तिगत रूप से अंतर महसूस करेंगे। इसलिए हमेशा इस यंत्र के संपर्क में रहें।

How bansuri is made and things to know before buying bansuri.

यदि आप लंबे समय तक अभ्यास करते हैं तो शुरुआती दिनों में आपका सर घूमने लगेगा, गला सूखने लगेगा और आप कमजोरी भी महसूस करेंगे। लेकिन कोई बात नहीं। जब सर घूमे या थकान लगे तो थोड़ी देर आराम करें और एक बार फिर से शुरू करें। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपके शरीर को इसकी आदत नहीं है। बांसुरी बजाना शुरू करने से पहले आप एक लोटा पानी पी लेंगे तो आपको काफी मदद मिलेगी।

                     शुरू में केवल 'सा' बजाने की कोशिश करें। एक तपस्या की तरह अभ्यास करें जबतक आप इसे साध न लें। जब आप लगातार एक साँस में 25 - 30 सेकंड तक बजने लगें तो समझिये की आप का सा सध गया है। आपको ये कैसे पता चलेगा की आपका सा सही बज रहा है।  यही पर आपको गुरु की जरुरत पड़ती है। अगर आपके अगल बगल गुरु न मिले तो आप ऑनलाइन भी सीख सकते है।  या फिर आप किसी बांसुरी के जानकर को सुना कर उससे गलतिया पूछ सकते है।


बांसुरी को समझने से पहले भारतीय शास्त्रीय संगीत के बारे में जानना आवश्यक है। 

भारतीय संगीत आधारित है स्वरों और ताल के अनुशासित प्रयोग पर। सात स्वरों के समुह को सप्तक कहा जाता है। भारतीय संगीत सप्तक के सात स्वर हैं-

सा(षडज), रे(ऋषभ), ग(गंधार), म(मध्यम), प(पंचम), ध(धैवत), नि(निषाद) 


अर्थात

सा, रे, ग, म, प ध, नि

सा और प को अचल स्वर माना जाता है। जबकि अन्य स्वरों के और भी रूप हो सकते हैं। जैसे 'रे' को 'कोमल रे' के रूप में गाया जा सकता है जो कि शुद्ध रे से अलग है। इसी तरह 'ग', 'ध' और 'नि' के भी कोमल रूप होते हैं। इसी तरह'शुद्ध म' को 'तीव्र म' के रूप में अलग तरीके से गाया जाता है। 


गायक या वादक गाते या बजाते समय मूलत: जिस स्वर सप्तक का प्रयोग करता है उसे मध्य सप्तक कहते हैं। ठीक वही स्वर सप्तक, जब नीचे से गाया जाये तो उसे मंद्र, और ऊपर से गाया जाये तो तार सप्तक कह्ते हैं। मन्द्र स्वरों के नीचे एक बिन्दी लगा कर उन्हें मन्द्र बताया जाता है। और तार सप्तक के स्वरों को, ऊपर एक बिंदी लगा कर उन्हें तार सप्तक के रूप में दिखाया जाता है। इसी तरह अति मंद्र और अतितार सप्तक में भी स्वरों को गाया-बजाया जा सकता है।

बांसुरी पर आपकी उंगलिया जल्दी चलें इसके लिए अलंकार का अभ्यास बहुत जरुरी होता है। आइये जानते है अलंकार क्या होते है। 


अलंकार का अर्थ है सजाना  या अलंकरण। भारतीय शास्त्रीय संगीत के संदर्भ में, अलंकार का अनुप्रयोग अनिवार्य रूप से शैली की अंतर्निहित सुंदरता को सुशोभित या बढ़ाने के लिए है।

संगीत के नये विद्यार्थी को सबसे पहले शुद्ध स्वर सप्तक के सातों स्वरों के विभिन्न प्रयोग के द्वारा आवाज़ साधने को कहा जाता है। इन को स्वर अलंकार कहते हैं।



 सा रे ग म प ध नि सां (आरोह)
सां नि ध प म ग रे सा (अवरोह)

(यहाँ आखिरी का सा तार सप्तक का है अत: इस सा के ऊपर बिंदी लगाई गयी है)

इस तरह जब स्वरों को नीचे से ऊपर सप्तक में गाया जाता है उसे आरोह कहते हैं। और ऊपर से नीचे गाते वक्त स्वरों को अवरोह में गाया जाना कहते हैं। 

इस अलंकार को पहले शुरू में 100 बार अभ्यास करना चाहिए और इससे पहले कि आप कोई सत्र शुरू करें, इसका उपयोग वार्म अप के लिए किया जा सकता है।





2
आ:
सा रे सा रे सा रे सा  4 (दोहराने 4 बार या अधिक के लिए अगर ठीक से नहीं आ रहा है)
रे गा रे गा रे गा रे x 4
गा मा गा मा गा गा x 4
मा पा मा पा मा पा मा x 10
पा धा पा धा पा धा x 4


Av:
सा  नी सा नी सा नी सा 4 4
नी धा न ध न ध न x 4
धा धा धा धा धा x 4
पा मा पा मा पा मा पा x 10
मा गा मा गा मा गा x 4
गा रे गा रे गा रे गा x 4
री सा रे सा रे सा रे x  4
सा नी सा नी सा नि सा x 4





सासा रेरे गग मम पप धध निनि सांसां । 
सांसां निनि धध पप मम गग रेरे सासा।
सारेग, रेगम, गमप, मपध, पधनि, धनिसां। 
सांनिध, निधप, धपम, पमग, मगरे, गरेसा।

सारे, रेग, गम, मप, पध, धनि, निसां। 
सांनि, निध, धप, पम, मग, गरे, रेसा।

सारेगमप, रेगमपध, गमपधनि, मपधनिसां। 
सांनिधपम, निधपमग, धपमगरे पमगरेसा।

सारेसारेग, रेगरेगम, गमगमप, मपमपध, पधपधनि, धनिधनिसां। 
सांनिसांनिध, निधनिधप, धपधपम, पमपमग, मगमगरे, गरेगरेसा।

सारेगसारेगसारेसागरेसा, रेगमरेगमरेगरेमगरे, गमपगमपगमगपमग, मपधमपधमपमधपम, पधनिपधनिपधपनिधप, धनिसांधनिसांधनिधसांनिध, निसांरेनिसांरेनिसांनिरेंसांनि, सांरेंगंसांरेंगंसांरेंसांगंरेंसां। 

सांरेंगंसांरेंगंसांरेंसांगंरेंसां, निसांरेनिसांरेनिसांनिरेंसांनि,धनिसांधनिसांधनिधसांनिध, पधनिपधनिपधपनिधप, मपधमपधमपमधपम, गमपगमपगमगपमग, रेगमरेगमरेगरेमगरे, सारेगसारेगसारेसागरेसा।



आ: (नि सा रे सा) x4,
(सा रे गा रे) x4,
(रे गा मा गा) x4,
(गा मा पा मा) x4,
(मा पा दे पा) x4,
(पा धा नी धा) x4,
(धा नी सा नी) x4,
(नी सा रे  सा) x4।

Av: (रे  सा नी सा) x4,
(एसए नी दे नी) x4,
(नी धा पा धा) x4,
(धा पा मा पा) x4,
(पा मा गा मा) x4,
(मा गा रे गा) x4,
(गा रे सा रे) x4,
(रे सा नि सा  x4








आः (नी सा रे गा रे सा) x4,
(सा रे गा मा गा रे) x4,
(रे गा मा पा मा गा) x4,
(गा मा पा दे पा मा) x4,
(मा पा दे नी दे पा) x4,
(पा धा नी सा नी धा) x4,
(धा नी सा रे रे नी) x4,
(नि सा रे ग रे सा) x4।

अव: (रे  सा नी दे नी सा) x4,
 (सा नी धा पा धा  नी) x4,
 (नी दे पा मा पा धा) x4,
 (धा मा गा मा पा) x4,
(पा मा गा रे गा मा) x4,
 (मा गा रे सा रे गा) x4,
(गा रे सा नी सा रे) x4,
(रे सा नि धा नि  सा) x4






बांसुरी अलंकार / Alankars for practice बांसुरी अलंकार / Alankars for practice Reviewed by Janhitmejankari Team on May 14, 2019 Rating: 5

4 comments:

  1. बांसुरी के संदर्भ में अति उत्तम जानकारी.

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  2. Good notes for beginning

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