Bogibeel bridge- longest rail-road bridge of India

बोगीबील पुल -देश के सबसे लंबे रेल-सड़क पुल का उद्घाटन कल



हाइलाइट्स

*पीएम मोदी 25 दिसंबर को असम में बोगीबील पुल का उद्घाटन करेंगे

*4.94 किलोमीटर लंबा यह पुल 21 साल बाद बनकर तैयार हुआ है

*ब्रह्मपुत्र नदी पर बना यह पुल आम प्रयोग के साथ-साथ सैन्य दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है

*पुल में ऊपर तीन लेन की सड़क और नीचे डबल रेलवे ट्रैक है। भारत के पहले और एशिया के दूसरे सबसे लंबे रेलवे और रोड पुल के ऊपर 3 लेन की एक सड़क है और उसके नीचे दोहरी रेल लाइन है. यह पुल ब्रम्हपुत्र के जल स्तर से 32 मीटर की ऊंचाई पर है. खास बात यह है कि इस तरह की तकनीक से स्वीडन और डेनमार्क को जोड़ने वाले पुल को बनाया गया है. बोगीबील पुल की तकनीक की श्रेष्ठता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसको बनाने में डेनमार्क से तकनीक ली गई तो वहीं इसकी टेस्टिंग का काम जर्मनी ने किया|

प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी  असम में बने भारत के सबसे लंबे रेल-सड़क पुल का शुभारंभ आगामी 25 दिसंबर को करेंगे। ब्रह्मपुत्र नदी पर बोगीबील में बनी 4.94 किलोमीटर लंबी और रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण यह परियोजना न केवल आम लोगों के लिए अपितु रक्षा मोर्चे पर भी अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार हो गई है। यह बोगीबिल पुल असम समझौते का हिस्सा रहा है और इसे 1997-98 में अनुशंसित किया गया था। 

आपको बता दें कि यह पुल अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन सीमा पर रक्षा सेवाओं के लिए भी आड़े वक्त में खास भूमिका निभा सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने 22 जनवरी, 1997 को इस पुल की आधारशिला रखी थी लेकिन इस पर काम 21 अप्रैल, 2002 को तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय में शुरू हो सका। पुल के शुभारंभ की तारीख का दिन 25 दिसंबर वाजपेयी की वर्षगांठ का भी दिन है। 

प्रॉजेक्ट में देरी के चलते 85 पर्सेंट बढ़ी लागत
परियोजना में अत्यधिक देरी के कारण इसकी लागत में 85 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो गई। शुरुआत में इसकी लागत 3230.02 करोड़ रुपये थी, जो बढ़कर 5,960 करोड़ रुपये हो गई। इस बीच पुल की लंबाई भी पहले की निर्धारित 4.31 किलोमीटर से बढ़ाकर 4.94 किलोमीटर कर दी गई। परियोजना के रणनीतिक महत्व को देखते हुए केंद्र सरकार ने इस पुल के निर्माण को 2007 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया था। इस कदम के बाद से धन की उपलब्धता बढ़ गई और काम की गति में तेजी आ गई। 

अधिकारियों ने इस पुल के बारे में कहा, 'यह ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारे पर रहने वाले लोगों को होने वाली असुविधाओं को काफी हद तक कम कर देगा पर इसकी संरचना और इसकी डिजाइन को मंजूरी देते समय रक्षा आवश्यकताओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक रक्षा सूत्र ने कहा, 'यह पुल सुरक्षा बलों और उनके उपकरणों के तेजी से आवागमन की सुविधा प्रदान करके पूर्वी क्षेत्र की राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाएगा। इसका निर्माण इस तरह से किया गया था कि आपात स्थिति में एक लड़ाकू विमान भी इस पर उतर सके।' 

आर्मी के साथ-साथ आम लोगों को भी फायदा
उन्होंने कहा, 'पुल का सबसे बड़ा लाभ दक्षिणी से उत्तरी तट तक सैनिकों की आसान आवाजाही में होगा। इसका मतलब यह हुआ कि चीन की तरफ, भारत की सीमा में कई सौ किलोमीटर की दूरी कम हो जाएगी।' सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'पहले ढोला-सदिया पुल और अब बोगीबील- ये दोनों भारत की रक्षा क्षमता को बढ़ाने जा रहे हैं।' 

पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (एनएफआर) के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी प्रणव ज्योति शर्मा ने कहा, 'चीन के साथ भारत की 4,000 किलोमीटर लंबी सीमा का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा अरुणाचल प्रदेश में है और यह पुल भारतीय सेना के लिए सीमा तक आवागमन में मदद करेगा। ब्रह्मपुत्र नदी पर बोगीबील पुल असम में डिब्रूगढ़ शहर से 17 किमी दूर स्थित है और इसका निर्माण तीन लेन की सड़कों और दोहरे ब्रॉड गेज ट्रैक के साथ किया गया है। यह पुल देश के पूर्वोत्तर इलाके की जीवन रेखा होगा और असम और अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर और दक्षिण तट के बीच संपर्क की सुविधा प्रदान करेगा। इससे अरुणाचल प्रदेश के अंजाव, चंगलांग, लोहित, निचली दिबांग घाटी, दिबांग घाटी और तिरप के दूरस्थ जिलों को बहुत लाभ होगा।' 

रेल मंत्रालय के डायरेक्टर इनफार्मेशन एंड पब्लिसिटी वेद प्रकाश  बोगीबिल पुल को लेकर काफी आशान्वित हैं उनका कहना है कि यह पुल पूर्वोत्तर में विकास का प्रतीक साबित होगा| इसके अलावा इस इलाके में आवाजाही का एक बड़ा उपयोगी साधन बनेगा| उन्होंने कहा कि चीनी सीमा पर तैनात सशस्त्र बलों को भी बोगीबील से काफी सहूलियत हो जाएगी|  रेलवे अधिकारियों के मुताबिक ट्रेन से डिब्रूगढ़ से अरुणाचल प्रदेश जाने के लिए व्यक्ति को गुवाहाटी होकर जाना होता है और इसके लिए उसे तकरीबन 600 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करनी होती है|  इस पुल के बन जाने से यह यात्रा काफी आसान हो जाएगी| 
1985 में हुए असम समझौते के मुताबिक बोगीबील पुल को ब्रह्मपुत्र के ऊपर बनाने के लिए केंद्र सरकार ने सहमति जताई थी. इसके 11 साल बाद बोगीबील पुल को 1996 में ही मंजूरी मिल गई थी. लेकिन इसका निर्माण कार्य 2002 में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने शुरू किया था. यूपीए सरकार ने 2007 में इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर दिया था. असम के डिब्रूगढ़ को अरुणाचल के पासीघाट से जोड़ने वाले भारत के सबसे लंबे और रणनीतिक तौर पर महत्त्वपूर्ण बोगीबील पुल का काम 2002 से शुरू होने के बाद काफी धीमा पड़ गया था. खास बात यह है कि कांग्रेस की सरकार ने 2009 में इसका उद्घाटन करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन यह हो न सका. 2014 में मोदी की सरकार बनने के बाद बोगीबील पुल पर तेजी से काम शुरू हुआ और आज पूरा होने की स्थिति में नजर आ रहा है.
बोगीबील पुल डिब्रूगढ़ शहर से 17 किलोमीटर दूरी पर ब्रह्मपुत्र नदी पर बन रहा है. बोगीबील पुल की अनुमानित लागत 5800 करोड़ रुपये है. इस पुल के बन जाने से ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी किनारे और उत्तरी किनारे पर मौजूद रेलवे लाइन आपस में जुड़ जाएंगे. ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी किनारे पर मौजूद चल खोवा और मोरान हॉट रेलवे स्टेशन तैयार हो चुके हैं. वहीं दूसरी तरफ रंगिया से आने वाली रेलवे लाइन को बोगीबिल ब्रिज के उत्तरी हिस्से तक पहुंचा दिया गया है. ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी हिस्से पर स्टेशन तैयार हो चुका है. रेलवे लाइन भी बिछ चुकी है. टंगानी और धमाल रेलवे स्टेशन बोगीबील पुल के जरिए आपस में जुड़ जाएंगे.
ब्रह्मपुत्र नदी डिब्रूगढ़ इलाके में काफी बड़ी नदी है. यह नदी इतनी बड़ी है कि यहां पर किलोमीटर तक इसकी चौड़ाई मापी जाती है. बोगीबील गांव के पास में ब्रह्मपुत्र नदी को दो तटबंधों से बांधा गया है. 10 किलोमीटर चौड़ी नदी को बांध कर 5 किलोमीटर के अंदर समेटा गया है. नदी को बांधकर इस पर लोहे के बड़े-बड़े टुकड़े आपस में वेल्डिंग के जरिए जोड़े गए हैं. इस पुल को बनाने में भारी संख्या में वेल्डिंग रॉड इस्तेमाल की गई है.
रेलवे के चीफ इंजीनियर कंस्ट्रक्शन महेंद्र सिंह के मुताबिक पुल के निर्माण में तकरीबन 35 लाख बोरी सीमेंट का इस्तेमाल हुआ है. इस पुल को अत्याधुनिक तकनीक ट्रायंगल ट्रस की तर्ज पर बनाया गया है. पुल को बनाने के लिए डी के आकार में बड़े-बड़े खंभे डाले गए हैं. रेलवे के इंजीनियर के मुताबिक पुल के लिए 42 भारी भरकम खंभे बनाए गए हैं. इन खंभों को ब्रह्मपुत्र नदी के ताले में वेल फाउंडेशन बनाकर जमाया गया है. हर एक खंभा ब्रह्मपुत्र नदी के अंदर 65 मीटर की गहराई तक डाला गया है. इस पुल को बनाने के लिए सबसे बेहतरीन सीमेंट का इस्तेमाल किया गया है.  
प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर के मुताबिक बोगीबील पुल को काफी मजबूत बनाया गया है. वजह यह है कि ब्रह्मपुत्र का यह इलाका भूकंप के लिहाज से सबसे खतरनाक जोन में आता है. लिहाजा पुल को 8 से ज्यादा मैग्निट्यूड के भूकंप को सहने के काबिल बनाया गया है. इस पुल के खंभे इतने ज्यादा मजबूत बनाए गए हैं, जिससे ब्रह्मपुत्र की बड़ी से बड़ी बाढ़ का इस पर थोड़ा भी असर न पड़े.
बोगीबील का पुल भारत के लिए रणनीतिक तौर से काफी महत्वपूर्ण है. भारतीय सेना और सुरक्षाबलों को अरुणाचल और असम के सभी हिस्सों के लिए ऑल टाइम कनेक्टिविटी देने के लिए यह पुल महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. इसके जरिए अरुणाचल में कई जगहों को रेलवे लाइन से सीधा जोड़ा जा सकेगा. भारत सरकार ने पहले ही तवांग के लिए रेलवे लाइन बिछाने का ऐलान कर दिया है. ऐसे में बोगीबील पुल अरुणाचल को पूरी तौर से भारतीय रेलवे के अलग-अलग स्टेशनों से जोड़ने का काम करेगा| 

Bogibeel bridge- longest rail-road bridge of India Bogibeel bridge- longest rail-road bridge of India Reviewed by Princy singh on December 24, 2018 Rating: 5

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