Guru Nanak jayanti- गुरु नानक जी की 550वीं प्रकाश वर्ष


गुरु नानक (जन्म 15 अप्रैल, 1469, तलवंडी, पंजाब; मृत्यु- 22 सितंबर, 1539) सिक्खों के प्रथम गुरु (आदि गुरु) थे। इनके अनुयायी इन्हें 'गुरु नानक', 'बाबा नानक' और 'नानकशाह' नामों से संबोधित करते हैं। गुरु नानक 20 अगस्त, 1507 को सिक्खों के प्रथम गुरु बने थे। वे इस पद पर 22 सितम्बर, 1539 तक रहे।

जन्म
पंजाब के तलवंडी नामक स्थान में 15 अप्रैल, 1469 को एक किसान के घर गुरु नानक उत्पन्न हुए। यह स्थान लाहौर से 30 मील पश्चिम में स्थित है। अब यह 'नानकाना साहब' कहलाता है। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। नानक के पिता का नाम कालू एवं माता का नाम तृप्ता था। उनके पिता खत्री जाति एवं बेदी वंश के थे। वे कृषि और साधारण व्यापार करते थे और गाँव के पटवारी भी थे। गुरु नानक देव की बाल्यावस्था गाँव में व्यतीत हुई। बाल्यावस्था से ही उनमें असाधारणता और विचित्रता थी। उनके साथी जब खेल-कूद में अपना समय व्यतीत करते तो वे नेत्र बन्द कर आत्म-चिन्तन में निमग्न हो जाते थे। इनकी इस प्रवृत्ति से उनके पिता कालू चिन्तित रहते थे।

आरंभिक जीवन
सात वर्ष की आयु में वे पढ़ने के लिए गोपाल अध्यापक के पास भेजे गये। एक दिन जब वे पढ़ाई से विरक्त हो, अन्तर्मुख होकर आत्म-चिन्तन में निमग्न थे, अध्यापक ने पूछा- पढ़ क्यों नहीं रहे हो? गुरु नानक का उत्तर था- मैं सारी विद्याएँ और वेद-शास्त्र जानता हूँ। गुरु नानक देव ने कहा- मुझे तो सांसारिक पढ़ाई की अपेक्षा परमात्मा की पढ़ाई अधिक आनन्दायिनी प्रतीत होती है, यह कहकर निम्नलिखित वाणी का उच्चारण किया- मोह को जलाकर (उसे) घिसकर स्याही बनाओ, बुद्धि को ही श्रेष्ठ काग़ज़ बनाओ, प्रेम की क़लम बनाओ और चित्त को लेखक। गुरु से पूछ कर विचारपूर्वक लिखो (कि उस परमात्मा का) न तो अन्त है और न सीमा है। इस पर अध्यापक जी आश्चर्यान्वित हो गये और उन्होंने गुरु नानक को पहुँचा हुआ फ़क़ीर समझकर कहा- तुम्हारी जो इच्छा हो सो करो। इसके पश्चात् गुरु नानक ने स्कूल छोड़ दिया। वे अपना अधिकांश समय मनन, ध्यानासन, ध्यान एवं सत्संग में व्यतीत करने लगे। गुरु नानक से सम्बन्धित सभी जन्म साखियाँ इस बात की पुष्टि करती हैं कि उन्होंने विभिन्न सम्प्रदायों के साधु-महत्माओं का सत्संग किया था। उनमें से बहुत से ऐसे थे, जो धर्मशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित थे। अन्त: साक्ष्य के आधार पर यह भलीभाँति सिद्ध हो जाता है कि गुरु नानक ने फ़ारसी का भी अध्ययन किया था। 'गुरु ग्रन्थ साहब' में गुरु नानक द्वारा कुछ पद ऐसे रचे गये हैं, जिनमें फ़ारसी शब्दों का आधिक्य है।

बचपन
गुरु नानक की अन्तमुंखी-प्रवृत्ति तथा विरक्ति-भावना से उनके पिता कालू चिन्तित रहा करते थे। नानक को विक्षिप्त समझकर कालू ने उन्हें भैंसे चराने का काम दिया। भैंसे चराते-चराते नानक जी सो गये। भैंसें एक किसान के खेत में चली गयीं और उन्होंने उसकी फ़सल चर डाली। किसान ने इसका उलाहना दिया किन्तु जब उसका खेत देखा गया, तो सभी आश्चर्य में पड़े गये। फ़सल का एक पौधा भी नहीं चरा गया था। 9 वर्ष की अवस्था में उनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ। यज्ञोपवीत के अवसर पर उन्होंने पण्डित से कहा - दया कपास हो, सन्तोष सूत हो, संयम गाँठ हो, (और) सत्य उस जनेउ की पूरन हो। यही जीव के लिए (आध्यात्मिक) जनेऊ है। ऐ पाण्डे यदि इस प्रकार का जनेऊ तुम्हारे पास हो, तो मेरे गले में पहना दो, यह जनेऊ न तो टूटता है, न इसमें मैल लगता है, न यह जलता है और न यह खोता ही है।

गुरु नानक से जुड़ी कथा : खुदा का घर
गुरु नानक तीर्थाटन करते हुए मक्का-शरीफ पधारे। रात हो गई थी, अतः वे समीप ही एक वृक्ष के नीचे सो गए। 

सबेरे उठे तो उन्होंने अपने चारों ओर बहुत सारे मुल्लाओं को खड़ा पाया। उनमें से एक ने नानक देव को उठा देख डांटकर पूछा, 'कौन हो जी तुम, जो खुदा पाक के घर की ओर पांव किए सो रहे हो?' 

बात यह थी कि नानक देव के पैर जिस ओर थे, उस ओर काबा था। नानक देव ने उत्तर दिया, 'जी, मैं एक मुसाफिर हूं, गलती हो गई। आप इन पैरों को उस ओर कर दें जिस ओर खुदा का घर नहीं हो।' 

यह सुनते ही उस मुल्ला ने गुस्से से पैर खींचकर दूसरी ओर कर दिए किंतु सबको यह देख आश्चर्य हुआ कि उनके पैर अब जिस दिशा की ओर किए गए थे, काबा भी उसी तरफ है। वह मुल्ला तो आग बबूला हो उठा और उसने उनके पैर तीसरी दिशा की ओर कर दिए किंतु यह देख वह दंग रह गया कि काबा भी उसी दिशा की ओर है। 

सभी मुल्लाओं को लगा कि यह व्यक्ति जरूर ही कोई जादूगर होगा। वे उन्हें काजी के पास ले गए और उससे सारा वृत्तांत कह सुनाया। काजी ने नानकदेव से प्रश्न किया, 'तुम कौन हो, हिंदू या मुसलमान?' 

' जी, मैं तो पांच तत्वों का पुतला हूं'- उत्तर मिला। 
' फिर तुम्हारे हाथ में पुस्तक कैसे है?' 
' यह तो मेरा भोजन है। इसे पढ़ने से मेरी भूख मिटती है।' 

इन उत्तरों से ही काजी जान गया कि यह साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि कोई पहुंचा हुआ महात्मा है। उसने उनका आदर किया और उन्हें तख्त पर बिठाया।

कैसे मनाया जाता है गुरु नानक जयंती

सिख धर्म के पहले गुरु के रूप में गुरुनानक जी को पूजा जाता है। गुरु नानकजी के जन्मदिन (जयंती) को प्रकाश पर्व या गुरू पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। उनका जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। गुरु नानक देव को मुख्य रूप से सिक्ख धर्म का गुरु माना जाता है लेकिन हिंदू धर्म में भी इस पर्व का उत्साह देखा जा सकता है। इस दिन गुरु नानक देव के जीवन और उनकी दी हुई शिक्षाओं को याद करने के लिए कई प्रकार की गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। इस बार गुरु नानक जयंती 23 नवंबर को है। इस वर्ष गुरु नानक जी की 550वीं प्रकाश वर्ष है।

गुरु नानक  जयंती कार्तिक माह में मनाई जाती है। चंद्र पंचांग हर साल ग्रह-नक्षत्रों की चाल और तिथि के हिसाब से बदलता रहता है इसलिए नानदेव जी की जयंती अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से अक्टूबर या नवंबर के महीने में आती है। पंजाब के अलावा उत्तरी भारत के लगभग सभी राज्यों में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन धर्म गुरु और समाज के सम्माननीय लोग गुरु नानक की शिक्षाओं और संदेशों को दोहराते हैं ताकि जनमानस में उन पवित्र विचारों को फिर से ताजा किया जा सके। गुरु नानक को सभी धर्मों के लोग सम्मान के साथ याद करते हैं।

देश भर में आयोजित होते हैं ये कार्यक्रम
गुरु नानक देव की जयंती पर सिक्ख धर्म सहित अन्य धर्म और समुदाय के लोग कई प्रकार की गतिविधियों का आयोजन करते हैं। इनमें से कुछ आयोजन ऐसे हैं, जिन्हें देशभर में बड़े-छोटे स्तर पर आयोजित किया जाता है।

अखंड पाठ
गुरु नानक जयंती पर मुख्य सिख क्षेत्रों में केंद्रीय स्थानों पर लगातार पाठ किया जाता है। जिसे अखंड पाठ के रूप में जाना जाता है, यह कार्यक्रम 48 घंटे तक चलता है। अखंड पाठ के दौरान, सिख धर्म की पवित्र पुस्तक गुरु ग्रंथ साहिब के मुख्य अध्यायों का पाठ किया जाता है। कुछ लोग प्रार्थना या जाप भी करते हैं। इस उत्सव के लिए सबसे लोकप्रिय प्रार्थनाएं जपजी साहिब और सिद्ध गोश है।

नगर कीर्तन
उत्सव से एक दिन पहले, सिख समुदाय के लोग नगर कीर्तन में हिस्सा लेते हैं। यह एक जुलूस की तरह होता है। यह जुलूस पांच लोगों और एक सिख झंडे के साथ निकाला जाता है। बाकी लोग इनके पीछे जलते हुए भजन-कीर्तन करते रहते हैं।

लंगर
गुरुनानक देव जी की जयंती पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरुद्वारों में भव्य स्तर पर लंगर का आयोजन किया जाता है। इस दौरान लगातार गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ चलता रहता है।

गुरु नानक के 10 उपदेश

1.गुरु नानक देव ने इक ओंकार का नारा दिया यानी ईश्वर एक है। वह सभी जगह मौजूद है। हम सबका “पिता” वही है इसलिए सबके साथ प्रेमपूर्वक रहना चाहिए।

2. किसी भी तरह के लोभ को त्याग कर अपने हाथों से मेहनत कर और न्यायोचित तरीकों से धन का अर्जन करना चाहिए।

3.कभी भी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए बल्कि मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरतमंदों की भी मदद करनी चाहिए।

4.धन को जेब तक ही सीमित रखना चाहिए। उसे अपने हृदय में स्थान नहीं बनाने देना चाहिए अन्यथा नुकसान हमारा ही होता है।

5. स्त्री-जाति का आदर करना चाहिए। गुरु नानक देव, स्त्री और पुरुष सभी को बराबर मानते थे।

6. तनाव मुक्त रहकर अपने कर्म को निरंतर करते रहना चाहिए तथा सदैव प्रसन्न भी रहना चाहिए।

7. संसार को जीतने से पहले स्वयं अपने विकारों और बुराईयों पर विजय पाना अति आवश्यक है।

8. अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसलिए अहंकार कभी नहीं करना चाहिए बल्कि विनम्र होकर सेवाभाव से जीवन गुजारना चाहिए।

9. गुरु नानक देव पूरे संसार को एक घर मानते थे जबकि संसार में रहने वाले लोगों को एक ही परिवार का हिस्सा।

10.लोगों को प्रेम, एकता, समानता, भाईचारा और आध्यात्मिक ज्योति का संदेश देना चाहिए।
Guru Nanak jayanti- गुरु नानक जी की 550वीं प्रकाश वर्ष Guru Nanak jayanti-  गुरु नानक जी की 550वीं प्रकाश वर्ष Reviewed by Princy singh on November 19, 2018 Rating: 5

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