Birsa Munda : Greatest tribal leader
Birsa Munda : Greatest tribal leader - आज जन्मदिन जाने कौन थे बिरसा मुंडा क्यों मानते है आज भी लोग उन्हें भगवान\
उन्नीसवीं सताब्दी तक बर्तानिया साम्राज्य इतना विस्तारित हो गया था की उनके साम्राज्य में सूर्यास्त कभी नहीं होता था। पुरे विश्व की सबसे ताकतवर फ़ौज को जिसने अकेले ही छोटी सी फ़ौज लेकर नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था वो थे हमारे बिरसा मुंडा। एक महानायक जिन्हे लोग देवता की तरह पूजते थे।
बिरसा मुंडा की प्रतिमा - आंबेडकर पार्क लखनऊ , उत्तर प्रदेश |
"अबुआ राज सेतेर जाना, महारानी राज टुण्डु जाना" - के नारे के साथ जिसका हिंदी अनुवाद है "अबुआ राज आएगा और महारानी राज जायेगा", बिरसा मुंडा ने अंग्रेजी साम्रज्य की नींव झगझोर के रख दी थी।
बिरसा मुंडा ही अकेले ऐसे अदिवासी नायक है जिनकी प्रतिमा संसद में है।
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को रांची जिले के उलिहतु गाँव में हुआ था | मुंडा रीती रिवाज के अनुसार उनका नाम बृहस्पतिवार के हिसाब से बिरसा रखा गया था | बिरसा के पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी हटू था | उनका परिवार रोजगार की तलाश में उनके जन्म के बाद उलिहतु से कुरुमब्दा आकर बस गया जहा वो खेतो में काम करके अपना जीवन चलाते थे | उसके बाद फिर काम की तलाश में उनका परिवार बम्बा चला गया |
बिरसा मुंडा ने मुंडा सरदारों को संगठित कर अंग्रेज़ो के खिलाफ एक आंदोलन चलाया जिसे उलगुलान के नाम से जाना जाता है। एक ईसाई पादरी डॉ नोट्रेट था भोले भले मुंडा आदिवासी को लालच दिया की अगर वो इसे धर्म अपना लेते है और उसके अनुदेशों को पालन करते हैं तो मुंडा सरदारों को उनकी ज़मीन वापस दिलवा देगा। लेकिन भोले भाले आदिवासी मुंडा लोगों को सिर्फ धोखा ही मिला। 1886 -87 में जब मुंडा लोगों ने आंदोलन किया तो उनके आंदोलन को दबा दिया गया। ईसाई मिशनरियों ने मुंडा लोगों की सहायता की बजाय उल्टा उनके कार्य की निंदा की। बिरसा को इससे बहुत बड़ा आघात लगा।
अक्टूबर 1894 में एक युवा नेता के रूप में मुंडा सरदारों को एकत्रित कर लगान माफ़ी के लिए आंदोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हज़ारीबाग़ केंद्रीय कारावास में दो साल की जेल हुई। 1897-1900 के बीच बिरसाओं और अँगरेज़ सिपाहियों के बीच बहुत लड़ाई हुई। तीर कमान के साथ लड़ने वाली निर्भीक मुंडाओं ने अँगरेज़ सिपाहियों की नाक में दम कर दिया था। जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा केकुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गयेबिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून 1900 को राँची कारागार में लीं। उनकी मौत आज भी एक रहस्य है। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा कोभगवान की तरह पूजा जाता है।
Birsa Munda : Greatest tribal leader
Reviewed by Janhitmejankari Team
on
November 15, 2018
Rating:
Nice one!!
ReplyDeleteThanku so much for reading and appreciating
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