अध्याय ६ श्लोक ५
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् |
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन: || 5||
अर्थ- मनुष्य को आप ही अपना उद्धार करना होगा और अपने को नीचे न गिरने दे। मनुष्य स्वयं ही खुद का सबसे बड़ा मित्र और खुद ही सबसे बड़ा शत्रु होता है।
अध्याय ६ श्लोक ५
गीता खुद में ही ज्ञान का अपार सागर है, जो जीवन के हर मोड़ पे हमें सीख देती है।
श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश हर मनुष्य के लिए उपयोगी है।
अध्याय ६ श्लोक ५
Reviewed by Janhitmejankari Team
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October 02, 2018
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